यथादृष्टिः शरीरस्य
यथादृष्टिः शरीरस्य नित्यमेवप्रवर्तते।तथा नरेन्द्राराष्ट्रस्यप्रभवहः सत्यधर्मेयोः। । जैसे – जैसे दृष्टि शरीर के हित में प्रवृत्त होती है उसी प्रकार राजा […]
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यथादृष्टिः शरीरस्य नित्यमेवप्रवर्तते।तथा नरेन्द्राराष्ट्रस्यप्रभवहः सत्यधर्मेयोः। । जैसे – जैसे दृष्टि शरीर के हित में प्रवृत्त होती है उसी प्रकार राजा […]
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उद्यमं सक्षमं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः।षडेते यत वर्तन्ते तत्र देवः सहायकृत। । प्रयास , साहस , धैर्य , बुद्धि ,
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नहि वेरेन वेरानि , सम्मंतीथ कुदाचन।अवेरेन च सम्मन्ति , एस धम्मो सनन्तनो। । वैर से कभी वैर शांत नहीं होता
यतो यतो निश्चिरति मनश्चञ्चलमस्थिरम।ततस्तस्तो नियम्यैतद , आत्मन्येव। । यह चंचल और अस्थिर मन जहां-जहां विचलित होता है , वहां उसे
वृक्ष कबहूँ नहिं फल भखै , नदी न संचै नीर।परमारथ के कारने , साधुन धरा शरीर। । वृक्ष कभी अपना
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वाणी रसवती यस्य ,यस्य श्रमवती क्रिया।लक्ष्मी दानवती यस्य , सफलं तस्य जीवनम्। । जिसकी वाणी में मधुरता और परिश्रमशील है
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है।वह नर नहीं नर – पशु निरा और मृतक समान है।