यो न हृष्यति न द्वेष्टि
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥ भावार्थ : जो न कभी हर्षित होता […]
यो न हृष्यति न द्वेष्टि Read More »
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥ भावार्थ : जो न कभी हर्षित होता […]
यो न हृष्यति न द्वेष्टि Read More »
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥११॥ “ये मेरा है”, “वह उसका है” जैसे विचार केवल संकुचित मस्तिष्क वाले
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद गजभूषणम्।चातुर्यं भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणम्॥१३॥ तेज चाल घोड़े का आभूषण है, मत्त चाल हाथी का
अश्वस्य भूषणं वेगो Read More »
क्षुध् र्तृट् आशाः कुटुम्बन्य मयि जीवति न अन्यगाः।तासां आशा महासाध्वी कदाचित् मां न मुञ्चति॥१४॥ भूख, प्यास और आशा मनुष्य की
क्षुध् र्तृट् आशाः कुटुम्बन्य मयि Read More »
कुलस्यार्थे त्यजेदेकम् ग्राम्स्यार्थे कुलंज्येत्।ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥१५॥ कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के
कुलस्यार्थे त्यजेदेकम् Read More »
रहिमन रहिला की भला , जो परसे चितलाय।परसत मन मैला करे , मैदा हूँ जरि जाय। । रहिमनदास कहते हैं
रहिमन रहिला की भला Read More »
तुलसी पिछले पाप से हरि चर्चा न सुहाय।जैसे स्वर के बेग से भूख विदा हो जाय। । तुलसीदास जी कहते
तुलसी पिछले पाप से Read More »
जितने कष्ट कंटको में है जिसका जीवन सुमन खिला।गौरव गंध उन्हें इतना ही , यत्र तत्र सर्वत्र मिला। । जिन्होंने
जितने कष्ट कंटको में है Read More »
अमन्त्रम अक्षरं नास्ति , मूलमनौषधं।अयोग्य पुरुषः नास्ति , योजकस्त्र दुर्लभः।। ऐसा कोई अक्षर नहीं जिसका मंत्र न बन सके। ऐसी
अमन्त्रम अक्षरं नास्ति Read More »