जितने कष्ट कंटको में है
जितने कष्ट कंटको में है जिसका जीवन सुमन खिला।गौरव गंध उन्हें इतना ही , यत्र तत्र सर्वत्र मिला। । जिन्होंने […]
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जितने कष्ट कंटको में है जिसका जीवन सुमन खिला।गौरव गंध उन्हें इतना ही , यत्र तत्र सर्वत्र मिला। । जिन्होंने […]
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अमन्त्रम अक्षरं नास्ति , मूलमनौषधं।अयोग्य पुरुषः नास्ति , योजकस्त्र दुर्लभः।। ऐसा कोई अक्षर नहीं जिसका मंत्र न बन सके। ऐसी
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सर्व धर्म समा वृत्तिः ,सर्व जाति समा मतिः।सर्व सेवा परानीति रीतिः संघस्य पद्धति। । सभी धर्मों के साथ समान वृत्ति
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंघस्य प्रविश्यन्ति मुखे मृगाः। । प्रत्यक्ष करने पर ही किसी कार्य में
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विद्या ददाति विनयं विन्यात याति पात्रताम।पात्र्त्वात धनमाप्नोति धनात धर्म ततः सुखम। । विद्या विनम्रता देती है विनम्रता से पात्रता आती
जे रहिम उत्तम प्रकृत्ति का करि सकत कुसंग।चन्दन विष व्यापत नहीं , लपटे रहत भुजंग। । जो मनुष्य उत्तम प्रकृति
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आलसस्य कुतो विद्या , अविद्यस्य कुतो धनम।अधनस्य कुतो मित्रं , अमित्रस्य कुतः सूखम। । आलसी आदमी को विद्या कहां से
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पुस्तकस्था तू या विद्या , परहस्तं गतं धनम।कार्यकाले समुत्पन्ने , न सा विद्या न तत धनम। । पुस्तक में स्थित
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येषां न विद्या न तपो न दानं , ज्ञानं न गुणों न धर्मः ,ते मर्त्य लोके भुवि भरभूताः मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।
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