आपूर्यमाणमचलप्रातिष्ठं
आपूर्यमाणमचलप्रातिष्ठं समुद्रमाप: प्राविशन्ति यद्वत् ।तद्वत् कामा यं प्राविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।।– गीता २।७० जो व्यक्ति समय समय […]
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आपूर्यमाणमचलप्रातिष्ठं समुद्रमाप: प्राविशन्ति यद्वत् ।तद्वत् कामा यं प्राविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ।।– गीता २।७० जो व्यक्ति समय समय […]
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मैत्री करूणा मुदितोपेक्षाणां।सुख दु:ख पुण्यापुण्य विषयाणां।भावनातश्चित्तप्रासादनम्।– पातञ्जल योग १। आनंदमयता, दूसरे का दु:ख देखकर मन में करूणा, दूसरे का पुण्य
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यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥ भावार्थ : जो न कभी हर्षित होता
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अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥११॥ “ये मेरा है”, “वह उसका है” जैसे विचार केवल संकुचित मस्तिष्क वाले
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद गजभूषणम्।चातुर्यं भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणम्॥१३॥ तेज चाल घोड़े का आभूषण है, मत्त चाल हाथी का
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क्षुध् र्तृट् आशाः कुटुम्बन्य मयि जीवति न अन्यगाः।तासां आशा महासाध्वी कदाचित् मां न मुञ्चति॥१४॥ भूख, प्यास और आशा मनुष्य की
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कुलस्यार्थे त्यजेदेकम् ग्राम्स्यार्थे कुलंज्येत्।ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥१५॥ कुटुम्ब के लिए स्वयं के स्वार्थ का त्याग करना चाहिए, गाँव के
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रहिमन रहिला की भला , जो परसे चितलाय।परसत मन मैला करे , मैदा हूँ जरि जाय। । रहिमनदास कहते हैं
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तुलसी पिछले पाप से हरि चर्चा न सुहाय।जैसे स्वर के बेग से भूख विदा हो जाय। । तुलसीदास जी कहते
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