योजनानां सहस्रं

योजनानां सहस्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका ।
आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति ।।

यदि चींटी चल पडी तो धीरे धीरे वह एक हजार योजनाएं भी चल सकती हैं । परन्तु यदि गरूड जगह से नहीं हिला तो वह एक पग भी आगे नहीं बढ सकता ।

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