परम पूज्य श्री गुरूजी
हमारे समाज पर हुए निरंतर आघातों के बाद भी हम जीवित हैं. उसका मूल कारण हमारी समाज रचना ही है , जो आज भी विश्व को शांति का मार्ग बताने में समर्थ है. युद्ध ना हो विश्व में शांति हो सब लोग सुखी हो परस्पर वैमनस्य ना हो यह हमारी संस्कृति की कल्पना है. सर्वे भवंतु सुखिना हमारे पूर्वजों ने ही कहा और उसे आचरण में भी उतार कर दिखाया। हमारे में अभी भी मनुष्य को विकसित करने का सामर्थ्य है आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक के अंतः करण में इसकी विशिष्टता का साक्षात्कार हो