आयुष: क्षण एकोपि

आयुष: क्षण एकोपि सर्वरत्नैर्न लभ्यते ।
नीयते तद् वृथा येन प्रामाद: सुमहानहो ।।

सब रत्न देने पर भी जीवन का एक क्षण भी वापास नहीं मिलता । ऐसे जीवन के क्षण जो निरर्थक ही खर्च कर रहे हैं वे कितनी बडी गलती कर रहे है ।

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