यथादृष्टिः शरीरस्य

यथादृष्टिः शरीरस्य नित्यमेवप्रवर्तते।
तथा नरेन्द्राराष्ट्रस्यप्रभवहः सत्यधर्मेयोः। ।

जैसे – जैसे दृष्टि शरीर के हित में प्रवृत्त होती है उसी प्रकार राजा – राज्य के भीतर सत्य और धर्म का प्रवर्तक होता है।

Leave a Comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *