यतो यतो निश्चिरति मनश्चञ्चलमस्थिरम।
ततस्तस्तो नियम्यैतद , आत्मन्येव। ।
यह चंचल और अस्थिर मन जहां-जहां विचलित होता है , वहां उसे नियंत्रित करके स्वयं को वश में करना चाहिए।
यतो यतो निश्चिरति मनश्चञ्चलमस्थिरम।
ततस्तस्तो नियम्यैतद , आत्मन्येव। ।
यह चंचल और अस्थिर मन जहां-जहां विचलित होता है , वहां उसे नियंत्रित करके स्वयं को वश में करना चाहिए।